Tuesday, June 28, 2016

तुम भी तो इक माँ हो आखिर..

जैसे गोरे गालों पर माँ काला टीका करती थी..
तुमने काली रातों में इक उजला चांद सजाया है..

तुम भी तो इक माँ हो आखिर..

                                            – सोनित

Tuesday, June 14, 2016

ऊंचाई की कीमत

अब मुझको बढ़ जाना है ऊपर तक चढ़ जाना है 
बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है 

पंछी तुझसे बातें करते बादल करते तुझे सलाम 
चूं-चूं चीं-चीं खट पट-खट पट 
जब जब घिरने आती शाम
मुझको भी हर शाम चौकड़ी मिलकर खूब जमाना है
बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है

बारिश की हर बूँद ठहरकर तुझसे हाथ मिलाती है
मंद पवन भी हौले हौले तेरी शाख हिलती है
तुम पूजा के पात्र बने हो मुझको भी बन जाना है
बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है 

बेल बखान सुना बूढ़े बरगद ने लम्बी सांस भरी 
बोला बेल सुनो अब मेरी बातें सच्ची और खरी
देखा तुमने कद मेरा और मेरी पत्ती हरी भरी
शान-ओ-शौकत इज्जत सब पर बात न तुमको ध्यान पड़ी
कितनी ही विपदाएं मुझको लगभग रोज उठाना है
बरगद कहता बेल तुम्हे भी काफी कुछ समझाना है

मंद हवाएं दिखी तुम्हे पर क़्यूं न तुम्हे तूफ़ान दिखा 
सम्मान दिखा बूँदों का पर न ओलों का अपमान दिखा
दिखी शाम की मंडलियां..पर दोपहरी का सूनापन??
तुम जिस छाँव तले बैठी हो उसकी खातिर जलता तन??
इस ऊंचाई की कीमत मुझको हर रोज चुकाना है
बरगद कहता बेल तुम्हे भी काफी कुछ समझाना है 

सुनकर बोली बेल  सुनो  है सब शर्तें मुझको स्वीकार
मुझको बस चढ़ जाने दो फिर देखो मेरा तुम विस्तार
आज तुम्हारी छाव तले पर कल फिर साथ चलूंगी मैं
नहीं जलोगे तुम्ही अकेले पल-पल साथ जलूँगी मैं
बस ऊँचा उठना है फिर चाहे हर कष्ट उठाना है
बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है.
                                                                         - सोनित

Wednesday, June 1, 2016

सिलवटें जाती नहीं..



नींद भी आती नहीं.. रात भी जाती नही..
कोशिशें इन करवटों की.. रंग कुछ लाती नहीं..

चादरों की सिलवटों सी हो गई है जिंदगी..
लोग आते.. लोग जाते.. सिलवटें जाती नहीं..

जुगनुओं के साथ काटी आज सारी रात मैंने..
राह तेरी भी तकी.. पर तुम कभी आती नहीं..

कुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में..
मैं जो कह पाता नहीं.. तुम जो सुन पाती नहीं..
                                                                      - सोनित