Friday, October 7, 2011

अकेला था तो मैं इस भीड़ में खोने से डरता था...


अकेला था तो मैं इस भीड़ में खोने से डरता था...
अभी तू साथ है मेरे..तुझे खोने से डरता हूँ...

कहाँ कल तक हमें बस फ़िक्र अपने आसुओं की थी...
कहाँ अब आजकल मैं बस तेरे रोने से डरता हूँ...

तुझे जब भूलना चाहूं तो तेरे ख्वाब आते है...
मुझे भी नींद आती है..मगर सोने से डरता हूँ...

तुझे पाने की चाहत में जिया हर एक लम्हा है...
मगर मजबूर हूँ कितना..तेरा होने से डरता हूँ...
                                                                                        -सोनित