Saturday, October 29, 2016

सौ सवाल करता हूँ..

सौ सवाल करता हूँ..
रोता हूँ..बिलखता हूँ..
बवाल करता हूँ..
हाँ मैं..........
सौ सवाल करता हूँ..

फिर भी लाकर उसी रस्ते पे पटक देता है..
वो देकर के जिंदगी का हवाला मुझको..
और चलता हूँ उन्ही दहकते अंगारों पर..
जब तक..किसी अंगारे सा दहकने न लगूँ..
महकने न लगूँ  इत्तर की खुशबू की तरह..
तपकर किसी हीरे सा चमकने न लगूँ..

फिर क्यों भला इतना मलाल करता हूँ..
रोता हूँ..बिलखता हूँ..
बवाल करता हूँ..
हाँ मैं..........
सौ सवाल करता हूँ..

                                   - सोनित

Wednesday, October 12, 2016

क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
छुपकर तुमसे और किसी से पहले बात तो मैंने की थी..
एक भरोसा था शीशे सा जो चटकाकर तोड़ दिया था..
संदेहों के बीच तुझे जब तन्हा मैंने छोड़ दिया था..
अपना सूरज आप डुबोकर पहले रात तो मैंने की थी..
इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

अब कर्मों की मार पड़ी है तो फिर तुमसे कैसा बैर..
अपनी बारी आन पड़ी है तो फिर तुमसे कैसा बैर..
कैसा बैर रखूं मैं बोलो कैसा अब विद्वेष रखूं..
हम दोनों में किसके दिल के टूटे अब अवशेष रखूं..
अपने ही उपवन में शोलों की बरसात तो मैंने की थी..
इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
                  
                                                        -सोनित