अब मुझको बढ़ जाना है ऊपर तक चढ़ जाना है बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है
पंछी तुझसे बातें करते बादल करते तुझे सलाम चूं-चूं चीं-चीं खट पट-खट पट जब जब घिरने आती शाम मुझको भी हर शाम चौकड़ी मिलकर खूब जमाना है बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है
बारिश की हर बूँद ठहरकर तुझसे हाथ मिलाती है मंद पवन भी हौले हौले तेरी शाख हिलती है तुम पूजा के पात्र बने हो मुझको भी बन जाना है बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है
बेल बखान सुना बूढ़े बरगद ने लम्बी सांस भरी बोला बेल सुनो अब मेरी बातें सच्ची और खरी देखा तुमने कद मेरा और मेरी पत्ती हरी भरी शान-ओ-शौकत इज्जत सब पर बात न तुमको ध्यान पड़ी कितनी ही विपदाएं मुझको लगभग रोज उठाना है बरगद कहता बेल तुम्हे भी काफी कुछ समझाना है
मंद हवाएं दिखी तुम्हे पर क़्यूं न तुम्हे तूफ़ान दिखा सम्मान दिखा बूँदों का पर न ओलों का अपमान दिखा दिखी शाम की मंडलियां..पर दोपहरी का सूनापन?? तुम जिस छाँव तले बैठी हो उसकी खातिर जलता तन?? इस ऊंचाई की कीमत मुझको हर रोज चुकाना है बरगद कहता बेल तुम्हे भी काफी कुछ समझाना है
सुनकर बोली बेल सुनो है सब शर्तें मुझको स्वीकार मुझको बस चढ़ जाने दो फिर देखो मेरा तुम विस्तार आज तुम्हारी छाव तले पर कल फिर साथ चलूंगी मैं नहीं जलोगे तुम्ही अकेले पल-पल साथ जलूँगी मैं बस ऊँचा उठना है फिर चाहे हर कष्ट उठाना है बेल बोलती बरगद तेरी संगत में पड़ जाना है. - सोनित