मैं अपनी सारी
मान्यताओं को
विश्वासों को
आदर्शों को
खड़ा कर देना चाहता हूँ उन तर्क-वितर्कों के आगे
जो करें इनपे प्रहार पूरी ताक़त से पुरज़ोर
नहीं भय कि टूटे मेरी मान्यताएँ
सत्य समझा जिसे वो हो धराशायी
आदर्श जिन्हें माना वो हों निकम्मे साबित
और सारे विश्वास हो जाएँ मटियामेट
अंततः
आडंबरों के आवरण से
मुक्त हो वह सत्य
जिसकी रोशनी भी अब कहीं
आती नहीं मुझको नज़र