हमने तुमने आग बरसते शोलों की रखवाली की है..
हमने तुमने अपनी बस्ती आप जलाकर खाली की है..
हमने तुमने दरियाओं को भी धारों में बाँट दिया है..
सूरज के सौ टुकड़े करके इन तारों में बाँट दिया है..
हमने तुमने खूं से खूं की खूं करने की कोशिश की है..
और दबाकर अपनी चीखें हूँ करने की कोशिश की है..
हमने तुमने सरहद पर भी जाने कैसा खेल रचा है..
सूनी माँगों के साए में हम दोनों का देश बचा है..
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