तूने बनाई थी बड़ी हमदर्द ये दुनिया...
संगदिल ये क्यूँ मुझे संगीन लगती है...
आंसुओ का हर तरफ़ सैलाब उमड़ा है...
दिल मगर बंजर कहाँ तक पीर भरती है...
मेरी पलकों पर लदा हर बोझ कड़वा है...
गैर पलकों की नमीं नमकीन लगती है...
दर्द से बेबस भले तिल-तिल तड़पता हो...
हर तमाशे पे यहाँ पर भीड़ लगती है...
संगदिल ये क्यूँ मुझे संगीन लगती है...
आंसुओ का हर तरफ़ सैलाब उमड़ा है...
दिल मगर बंजर कहाँ तक पीर भरती है...
मेरी पलकों पर लदा हर बोझ कड़वा है...
गैर पलकों की नमीं नमकीन लगती है...
दर्द से बेबस भले तिल-तिल तड़पता हो...
हर तमाशे पे यहाँ पर भीड़ लगती है...
और गलियों में मोहल्लों में वही चर्चा...
क्यूँ दर्द की हर दास्तां रंगीन लगाती है...
बहुत सुन्दर, खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteProtsahan ke liye bahut bahut aabhar shukla jee...
ReplyDeleteBahut hi khubsurti ke saath aapne apne bhav vyakt kiye hain.. pahli baar aapko padha.. anand aaya.. Aabhar.
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