Wednesday, August 10, 2011

वक़्त कैसा आ गया है, इस सफर में देखिये...


वक़्त कैसा आ गया है, इस सफर में देखिये...
जिंदगी हर मौत की शौकीन लगती है...
तूने बनाई थी बड़ी हमदर्द ये दुनिया...
संगदिल ये क्यूँ मुझे संगीन लगती है...

आंसुओ का हर तरफ़ सैलाब उमड़ा है...
दिल मगर बंजर कहाँ तक पीर भरती है...
मेरी पलकों पर लदा हर बोझ कड़वा है...
गैर पलकों की नमीं नमकीन लगती है...

दर्द से बेबस भले तिल-तिल तड़पता हो...
हर तमाशे पे यहाँ पर भीड़ लगती है...
और गलियों में मोहल्लों में वही चर्चा...
क्यूँ दर्द की हर दास्तां रंगीन लगाती है...

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर, खूबसूरत भावाभिव्यक्ति

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  2. Protsahan ke liye bahut bahut aabhar shukla jee...

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  3. Bahut hi khubsurti ke saath aapne apne bhav vyakt kiye hain.. pahli baar aapko padha.. anand aaya.. Aabhar.

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