नींद
भी आती नहीं.. रात भी जाती नही..
कोशिशें
इन करवटों की.. रंग कुछ लाती नहीं..
चादरों
की सिलवटों सी हो गई
है जिंदगी..
लोग
आते.. लोग जाते.. सिलवटें जाती नहीं..
जुगनुओं
के साथ काटी आज सारी रात
मैंने..
राह
तेरी भी तकी..
पर तुम कभी आती नहीं..
कुछ
शब्द छोड़े आज मैंने रात
की खामोशियों में..
मैं
जो कह पाता नहीं..
तुम जो सुन पाती
नहीं..
- सोनित
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2361 में दिया जाएगा
ReplyDeleteWah!
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब ... हर शेर लाजवाब है ...कमाल की ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteBeautiful...
ReplyDeleteवेहतरीन शेर। एक अच्छी रचना मुझे पसंद आई।
ReplyDeleteएक से बढि़या एक शेर। आपकी यह रचना बहुत ही शानदार और प्रभावी है। बहुत खूब लिखा है आपने।
ReplyDeleteकुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में..
ReplyDeleteमैं जो कह पाता नहीं.. तुम जो सुन पाती नहीं..
बहुत सुंदर शोनित जी।
हर शेर लाजवाब है
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in