इक हाथ सम्हलती बोतल...
दूजे में ख़त होता है...
मैं रोज नशा करता हूँ...
गम रोज गलत होता है...
तरकश पे तीर चड़ाकर...
बेचूक निशाना साधूँ...
उस वक्त गुजरना उनका...
हर तीर गलत होता है...
मिटटी के खिलौने रचकर...
फिर प्यार पलाने वाली...
गलती तो खुदा करता है...
इन्सान गलत होता है...
तुम जश्न कहो या मातम...
हर रोज मनाता हूँ मैं...
मैं रोज नशा करता हूँ...
गम रोज गलत होता है...
- सोनित
तुम जश्न कहो या मातम...
ReplyDeleteहर रोज मनाता हूँ मैं...
मैं रोज नशा करता हूँ...
गम रोज गलत होता है...
बढ़िया....
बहुत सुन्दर...वाह!
ReplyDeleteसोनित जी
ReplyDeleteआपका भी जवाब नहीं -
मैं रोज नशा करता हूँ...
ग़म रोज गलत होता है...
होगी कोई बात … अब क्या कहा जाए …
चलिए , थोड़ी थोड़ी पिया करो … :)
आपके लिए हार्दिक मंगलकामनाएं हैं !
मित्रता दिवस की शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आप मेरे यहाँ ठहरें और इतनी अच्छी प्रतिक्रियाएँ दी...बहुत बहुत धन्यवाद...
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