इन नजरों से देखो प्रियवर
पार क्षितिज के एक मिलन है
धरा गगन का प्यार भरा इक
मनमोहक सा आलिंगन है..
पंछी गान करे सुर लय में
नभ की आँखें लाल हुई हैं
कुछ दुःख सूरज के जाने का
कुछ शशि का भी अभिनन्दन है
धूल उठी है बस्ती बस्ती
गैया लौट के आई है घर
बछड़े की आँखें चमकी है
ममता भी कैसा बंधन है
शमा जली है परवाने को
खबर पड़ी तो भाग आया है
ला न सका कुछ,खुद जल बैठा
हाय कहो कैसा वंदन है
जीवन भी क्या जीवन जैसे
रंगमंच का खेल कोई है
कभी इसी में हास छिपा है
कभी छिपा इसमें क्रंदन है..
-सोनित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंलवार (21-02-2017) को
ReplyDeleteसो जा चादर तान के, रविकर दिया जवाब; (चर्चामंच 2596)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Dhanyvaad shashtri ji...
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