Wednesday, June 1, 2016

सिलवटें जाती नहीं..



नींद भी आती नहीं.. रात भी जाती नही..
कोशिशें इन करवटों की.. रंग कुछ लाती नहीं..

चादरों की सिलवटों सी हो गई है जिंदगी..
लोग आते.. लोग जाते.. सिलवटें जाती नहीं..

जुगनुओं के साथ काटी आज सारी रात मैंने..
राह तेरी भी तकी.. पर तुम कभी आती नहीं..

कुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में..
मैं जो कह पाता नहीं.. तुम जो सुन पाती नहीं..
                                                                      - सोनित

8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2361 में दिया जाएगा

    ReplyDelete
  2. वाह ... बहुत खूब ... हर शेर लाजवाब है ...कमाल की ग़ज़ल है ...

    ReplyDelete
  3. वेहतरीन शेर। एक अच्छी रचना मुझे पसंद आई।

    ReplyDelete
  4. एक से बढि़या एक शेर। आपकी यह रचना बहुत ही शानदार और प्रभावी है। बहुत खूब लिखा है आपने।

    ReplyDelete
  5. कुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में..
    मैं जो कह पाता नहीं.. तुम जो सुन पाती नहीं..

    बहुत सुंदर शोनित जी।

    ReplyDelete
  6. हर शेर लाजवाब है
    अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

    ReplyDelete