कश्ती समंदर को ठुकराने लगी है..
तुमसे भी बगावत की बू आने लगी है..
मत पूछिए क्या शहर में चर्चा है इन दिनों..
मुर्दों की शक्ल फिर से मुस्कुराने लगी है..
मैं सोचता हूँ इन चबूतरों पे बैठ कर..
गलियाँ बदल-बदल के क्यूँ वो जाने लगी है..
गुजरे हुए उस वक़्त की बेशर्मी मिली थी कल..
वो आज की हया से भी शर्माने लगी है..
किस चीज को कहूँ अब इंसान बताओ..
ये वो कली है जो अब मुरझाने लगी है..
-सोनित
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