हवाएँ मुस्कुराकर जब घटाओं को बुलाती है..
शजर मदहोश होते हैं..तुम्हारी याद आती है..
इन्ही आँखों का पानी फिर उतर आता है होठों तक..
भिगोकर होंठ कहता है..तुम्हारी याद आती है..
किताबें खोलने को जी नहीं करता मिरा बिल्कुल..
दबा एक फूल मिलता है..तुम्हारी याद आती है..
मैं सन्नाटों में खो जाता हूँ ये हालत है अब मेरी..
कोई पूछे तो कहता हूँ..तुम्हारी याद आती है..
कभी तू देखने तो आ तेरे मुफलिस के हुजरे में..
अमीरी छाई रहती है..तुम्हारी याद आती है..
तेरी यादों की स्याही से कलम दिल की भिगोकर के..
मैं लिखता हूँ मुझे जब-जब तुम्हारी याद आती है..
-सोनित
कभी तू देखने तो आ तेरे मुफलिस के हुजरे में..
ReplyDeleteअमीरी छाई रहती है..तुम्हारी याद आती है..
तेरी यादों की स्याही से कलम दिल की भिगोकर के..
मैं लिखता हूँ मुझे जब-जब तुम्हारी याद आती है..
यादें होती हीं हैं ऐसी और उसपर वे प्रिय की हों तो क्या कहना।
सही कहा आशा जी.. बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने.
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