Friday, July 15, 2016

रिश्तों की कमीज..

रिश्ते भी कमीज सरीखे होते हैं..
कुछ नए..कुछ पुराने..तो कुछ फटे हुए..
नए वाले अच्छे हैं
चमक है उनमें
पार्टी फंक्शन में पहनता हूँ
कुछ रौब भी जम जाता है
सम्हाल कर रखे हैं अलमारी में

पुराने वालों में अब वो चमक नहीं
घर में पहनने के काम आते हैं
गिले शिकवे होते हैं..पर इतनी दिक्क़त नहीं..
एक दो बटन टूट भी जाए तो चलता है
और इस्त्री की उन्हें आदत नहीं

और एक सन्दूक में कुछ फ़टे हुए भी रख्खे हैं..
हाँ सन्दूक में..सन्दूक भी पुराना है..
निकाल लेता हूँ साल में एकहाद बार..
अक्सर होली में क़्योंकि..
कितना भी रंग चड़ा लो इनपर
कोई फर्क नहीं पड़ता
बड़े बेरंग से हो गए हैं..
बस कुछ पल तन ढक लेता हूँ
जब तक वो और नहीं फटते..

पर..
कल दिल बैठ गया था मेरा..
जब तुम बोली कमीज बदलनी है..
नई चाहिए थी तुम्हे…
#सोनित

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. रिश्ते होते हैं अनमोल इनको जतन से रखिये,
    होते हैं बकुल फूलों से, खुशबू से मन खिला रखिये।

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  3. वाह.. आशा जी.. बहुत खूब कहा. धन्यवाद.

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