वो खुदा को इस जहाँ में देखता है
और फिर वो आसमाँ भी देखता है
जो मसीहा बन रहा था तब दिनों में
रात में अब क़त्ल होते देखता है
जुर्म को चुपचाप होते देख कहिए
है खुदा दुनिया में वो सब देखता है
झूठ के बाजार में सच बिक गया कल
और तू इन्साफ होता देखता है
बिक गए मोहरे सभी पैसों से लेकिन
खेलते उसको जमाना देखता है
और जो इन्साफ की खातिर लड़ा था
मंदिरों के पत्थरों को देखता है
-सोनित
और फिर वो आसमाँ भी देखता है
जो मसीहा बन रहा था तब दिनों में
रात में अब क़त्ल होते देखता है
जुर्म को चुपचाप होते देख कहिए
है खुदा दुनिया में वो सब देखता है
झूठ के बाजार में सच बिक गया कल
और तू इन्साफ होता देखता है
बिक गए मोहरे सभी पैसों से लेकिन
खेलते उसको जमाना देखता है
और जो इन्साफ की खातिर लड़ा था
मंदिरों के पत्थरों को देखता है
-सोनित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'