Sunday, July 31, 2016

और घर में बन्दर छोड़ चले..

तुम दिल क्यूँ मेरा तोड़ चले..
आँखों में समंदर छोड़ चले..
दिल को थी कहाँ उम्मीद-ए-वफ़ा..
यादों का बवंडर छोड़ चले..  
                                            😐
न पूछो कैसा किया सितम..
जो दिल से अपने निकाल दिया..
खुद को भी उठाकर ले जाते..
इस दिल के अंदर छोड़ चले..
                                              😛

ना जाग सकूं ना सोता हूँ..
हर वक़्त परीशाँ होता हूँ..
आए थे मदारी बनकर तुम..
और घर में बन्दर छोड़ चले..
                                           😀

                                                – सोनित

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-08-2016) को "घर में बन्दर छोड़ चले" (चर्चा अंक-2422) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद शास्त्री जी.

    ReplyDelete
  3. बहुत ख़ूब ... मदारी बन कर जो आते हैं बंदर तो बना ही जाते हैं ...

    ReplyDelete